देश का पहला चुनाव शिक्षा केंद्र सह संग्रहालय

देश का पहला चुनाव शिक्षा केंद्र सह संग्रहालय

देश की लोकतांत्रिक परंपरा का सबसे महत्वपूर्ण आधार मतदान और चुनाव है, जिसमें हर नागरिक बिना किसी भेदभाव के अपना वोट देने का समान अधिकार है। इसी कड़ी में, दिल्ली के मुख्य चुनाव अधिकारी के कार्यालय परिसर में भारतीय चुनावों की समृद्व विरासत, निर्वाचन की प्रक्रिया और निर्वाचन प्रबंधन का परिचय देने के लिए उद्देश्य से देश का पहला चुनाव शिक्षा केंद्र सह संग्रहालय बनाया गया है। इस संग्रहालय की एक और विशेषता यहां बनी गांधी दीर्घा है।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की चुनावी प्रक्रिया की ऐतिहासिक यात्रा की झलक देने वाला यह संग्रहालय दर्शक को इतिहास की विस्मृत गलियों में ले जाता है। संग्रहालय में संग्रहीत सैकड़ों पुरानी तस्वीरों, नक्शों और संदर्भों के माध्यम से निर्वाचन आयोग की निगरानी, निर्देशन और नियंत्रण में देश की चुनावी यात्रा की झांकी दर्शायी गई है।

भारत के तत्कालीन मुख्य निर्वाचन आयुक्त डॉक्टर नसीम जैदी ने दो अन्य निर्वाचन आयुक्तों, अचल कुमार जोती और ओम प्रकाश रावत, की उपस्थिति में 18 अक्तूबर 2016 को इस चुनाव शिक्षा केंद्र सह संग्रहालय का उदघाटन किया था। देश के निर्वाचन प्रबंधन की विषेशता यह है कि चुनावों के प्रभावी और कुशल प्रबंधन के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष और पारदर्शी प्रक्रिया को आत्मसात करते हुए समय के अनुरूप नवीनतम प्रौद्योगिकी को अपनाया गया है। यह चुनाव शिक्षा केंद्र सह संग्रहालय भारतीय चुनावों की उल्लेखनीय यात्रा को प्रस्तुत करता है। इन चुनावों ने पूरी दुनिया को ध्यान अपनी ओर खींचा है और उन्हें चुनावी प्रबंधन की पंरपरा को संरक्षित करते हुए संजोने के लिए प्रेरित किया है। दिल्ली के राजघाट स्थित राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय की सहायता से स्थापित लोकतंत्र के साथ गांधी के जुड़ाव पर आधारित एक दीर्घा भी इसका महत्वपूर्ण भाग है।

यह चुनाव शिक्षा केंद्र सह संग्रहालय दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कश्मीरी गेट स्थित पुराने सेंट स्टीफन कॉलेज भवन की पहली मंजिल में बना है। यह संग्रहालय महाराणा प्रताप अंतर्राज्यीय बस अड्डे (आईएसबीटी) और कश्मीरी गेट मेट्रो स्टेशन से लगभग 500 मीटर और लाल किले से लगभग 2 किलोमीटर दूर है। यहां आने वाले आगंतुकों की सुविधा के लिए यह संग्रहालय सभी कामकाजी दिनों में यानी सोमवार से शुक्रवार तक (राष्ट्रीय और राजपत्रित अवकाशों को छोड़कर) सुबह 11.00 बजे से लेकर शाम 04.00 बजे तक खुला रहता है।

इस केंद्र के दरवाजे आम जनता के साथ-साथ आईटीआई, स्कूलों और कॉलेजों के छात्रों के लिए भी खुले हैं। दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी की आधिकारिक वेबसाइट पर ऑनलाइन बुकिंग की सुविधा उपलब्ध है। जहां आगंतुक अपनी सुविधा के समय और तिथि पर अपनी यात्रा की योजना निश्चित कर सकते हैं। यह संग्रहालय छात्रों में खासा लोकप्रिय है। इस चुनाव शिक्षा केंद्र सह संग्रहालय मुख्य रूप से चार भाग-लाइब्रेरी, ऑडियो विजुअल कक्ष, फोटो गैलरी (चित्र प्रदर्शनी खंड) निर्वाचन प्रबंधन कक्ष और गांधी दीर्घा हैं।

पुस्तकालय
इस खंड में आगुंतकों के लिए चुनाव और उसकी प्रक्रिया से संबंधित पुस्तकों सहित अंग्रेजी-हिंदी साहित्य की पुस्तकें संग्रहित है। विविध विषयों वाली पुस्तकों में अधिकतर दिल्ली हिंदी अकादमी, राष्ट्रीय पुस्तक न्यास (एनबीटी), साहित्य अकादमी और प्रकाशन विभाग जैसे प्रतिष्ठित सरकारी प्रकाशनों की हैं। इस पुस्तकालय में विभिन्न समाचार पत्र, पत्रिकाएं और जर्नल भी उपलब्ध हैं जो कि आगंतुकों को ज्ञान अर्जित करने का एक अनुपम अवसर स्थान प्रदान करते हैं।

ऑडियो विजुअल कक्ष
इस खंड में फिल्मों और वृत्तचित्रों के प्रदर्शन की सुविधा सहित चुनावों से संबंधित तस्वीरें प्रदर्षित है। इनमें से एक लघु फिल्म, स्वतंत्र भारत के 1952 में हुए पहले आम चुनाव पर है। ऐसा ही एक दिलचस्प खंड है जो भारत में वर्ष 1952 में मतपेटी से लेकर वर्श 2015 में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन और मतदाता सत्यापन योग्य पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपीएटी) तक की एक लंबी और परिवर्तनशील यात्रा को प्रदर्शित करता है।

फोटो गैलरी (चित्र प्रदर्शनी खंड)
यह भारतीय लोकतंत्र की 70 साल से भी लंबी चुनावी यात्रा को दर्शाती है। यहां प्रदर्शित 120 से अधिक चुनावी तस्वीरों में वर्ष 1951-52 हुए पहले आम चुनाव से लेकर वर्ष 2015 तक के चुनावों की झलकियां देखने को मिलती है। ये फोटो चुनाव की तैयारियों, मतदाता शिक्षा, मतदान, मतगणना और चुनाव परिणामों के प्रदर्शन जैसे चुनाव के हर पहलू को उजागर करते हैं। इसके अलावा, यहां पर स्वीप की विभिन्न गतिविधियों की झलक दिखाई गई है। इसमें चुनाव के सभी आवश्यक चरणों सहित आज के मतदाताओं से उसके जुड़ाव को भी दिखलाया गया है।

निर्वाचन प्रबंधन खंड
इस खंड में चुनाव प्रक्रिया से संबंधित हर पक्ष (मतपत्र, मतदान बक्से, अमिट स्याही, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन, वीवीपैट, पेपर स्लिप, आदर्श आचार संहिता, स्वीप, रिटर्निंग अधिकारी और बूथ लेवल अफसर) के विषय में सूचना उपलब्ध है। मतदाता के रूप में पंजीकरण से लेकर चुनाव परिणाम की गिनती तक को प्रदर्शित किया गया है। राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के चुनावों के आयोजन को भी विस्तार से दिखाते हुए समझाया गया है। चुनावी प्रक्रिया के प्रत्येक चरण का आकर्षक विवरणों के साथ वर्णन किया गया है। इसमें वर्ष 1923 की दिल्ली की मतदाता सूची सहित विभिन्न सरकारी आदेश और अंग्रेज भारत के समय के परिपत्रों का प्रदर्शन उल्लेखनीय है। देश में चुनाव के दौरान मतदान करने वाले मतदाताओं की अंगुली पर लगाई जाने वाली अमिट स्याही के उपयोग को दर्शाया गया है। इससे पता चलता है कि दुनिया के 25 से अधिक देशों में अब इसका उपयोग किया जा रहा है।

गांधी दीर्घा
२८ जून १८९४ को एक युवा वकील मोहनदास करमचंद गाँधी ने नेटाल विधानसभा में याचिका दायर करते हुए कहा था कि जब एंग्लो-सैक्सन जाति पहली बार प्रतिनिधित्व के सिद्धांत से परिचित हुई, भारतीय राष्ट्र उसके काफी पहले चुनाव की शक्ति को जानता था और उस पर अमल कर रहा था। गाँधी दीर्घा में चुनावी लोकतंत्र के मूल्यों के लिए गाँधी की प्रासंगिकता को दर्शाया गया है। यह एक कम जानी बात है कि दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी का कार्यालय जिस भवन में स्थित है, उसे दुनिया भर में 32 गांधी विरासत भवनों में से एक घोषित किया गया है। इस तथ्य की स्वीकारोक्ति और भारत माता के इस सपूत के प्रति सम्मान को व्यक्त करने के उद्देश्य से केंद्र का एक भाग पूरी तरह से गांधी के व्यक्तित्व और लोकतंत्र पर उनके विचारों को समर्पित है। राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय की सहायता से स्थापित दीर्घा में वर्ष 1894 से लेकर मृत्युपर्यंत तक लोकतंत्र को लेकर गांधी के विचारों को प्रदर्शित किया गया है। यहां आने वाले सभी आगुंतकों की जानकारी के लिए गांधी के जीवन की महत्वपूर्ण घटनाओं का कालानुक्रमिक विवरण भी दिया गया है। इसी तरह, एक मजेदार प्रदर्शन विभिन्न भाषाओं में गांधी के हस्ताक्षर और लेख हैं।

यह सदन इस बात को महसूस करेगा कि मताधिकार लोकतंत्र की सर्वाधिक मौलिक चीज है इसलिए समस्त निर्वाचन तंत्र एक केंद्रीय निर्वाचन आयोग के हाथों में होना चाहिए जो रिटर्निंग अधिकारियों, मतदान अधिकारियों और निर्वाचन नामावालियों की तैयारियों एवं पुनरीक्षण के कार्यों में लगे हुए अन्य अधिकारियों को निर्देश जारी करने के लिए अधिकृत होगा ताकि भारत के किसी भी नागरिक, जो इस संविधान के अंतर्गत निर्वाचन नामावालियों में पंजीकृत होने के लिए पात्र है, प्रति कोई भी अन्याय न हो सकें।
-डाक्टर भीमराव आंबेडकर, संविधान सभा की बहस में

दिल्ली के मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय के भवन का इतिहास 
सन् 1890 में बना यह भवन सेंट स्टीफन महाविद्यालय के परिसर का एक हिस्सा था। इसके वास्तुकार सैम्युल स्विन्टन जैकब थे। इस दो मंजिली इमारत के आगे की तरफ विशाल ड्योढ़ी से प्रवेश का प्रावधान है। भूतल तथा प्रथम तल पर मेहराबदार स्तम्भों की पंक्तियां बनी है। उत्तर की तरफ किनारों पर अर्धअष्टभुजीय बुर्जियां बनी है। भीतर से इन बुर्जियों का इस्तेमाल सीढ़ियों के रूप में होता है। प्रथम तल पर एक विशाल कक्ष है, जिसकी छत की ऊंचाई पर चौड़ी अर्धवर्त्ताकार मेहराबें हैं।

Kuche Vs kooche_कुचे से कूचे तक

मराठी समाज में “कुचे” उपनाम होता है, जैसे महाराष्ट्र के जालना की बदनापुर विधानसभा क्षेत्र के विधायक नारायण कुचे। जबकि हिमाचल प्रदेश में धार चांग “कुचे” नामक एक स्थान है।

इसी तरह, दिल्ली की जुबां उर्दू में “कूचे” का मतलब है गली, तंग गली.

बकौल मिर्जा ग़ालिब
‘हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले।
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।।
निकलना खुल्द से आदम का सुनते आये थे लेकिन,
बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।

जबकि इब्न-ए-इंशा फरमाते हैं,
कूचे को तेरे छोड़ कर जोगी ही बन जाएँ मगर
जंगल तिरे पर्बत तिरे बस्ती तिरी सहरा तिरा

साहिर लुधियानवी ने एक फ़िल्मी नग्मे में इसे कुछ इस तरह बयां किया है,
ये कूचे, ये नीलाम घर दिलकशी के
ये लुटते हुए कारवां ज़िंदगी के
कहाँ हैं, कहाँ हैं मुहाफ़िज़ खुदी के
जिन्हें नाज़ है हिन्द पर वो कहाँ हैं
कहाँ हैं, कहाँ हैं, कहाँ हैं

इसी तरह, “ममता” नामक फ़िल्म की एक ग़ज़ल है,
रहते थे कभी जिनके दिल में
हम जान से भी प्यारों की तरह
बैठे हैं उन्ही के कूचे में हम
आज गुनहगारों की तरह

शकील बदायुँनी ने शबाब फिल्म में इस बात को कुछ ऐसे अर्ज किया है,
यही अरमान लेकर आज अपने घर से हम निकले
जहाँ है ज़िंदगी अपनी उसी कूचे में दम निकले

जबकि उत्तर भारत में कुल्चा एक तरह की रोटी है, जिसे अधिकतर छोले के संग खाया जाता है।

narcissus syndrome_social media

कुछ तो उनकी भी मजबूरियां रही होगी, यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता!

कुछ मित्रों को आयु, पद, ज्ञान और सुंदरता की परम अनुभूति है, जिसके कारण वे सब “नार्सिसस भाव” के शिकार है. “नार्सिसस” यूनानी दंतकथा में सौंदर्य का देवता है जो कि आत्ममुग्धता के भाव में जल में अपनी छवि को देखता हुआ, इतना आत्म मोहित हुआ कि पानी में ही डूबकर मर गया.

खैर, बात निकली थी सोशल मीडिया पर पोस्ट के “मित्रों” की लाइक-शेयर न मिलने की पीड़ा से. ऐसा न करने की मजबूरियों के कारण की मीमांसा से.

अब आप तो महल के ओटले पर ऊँचे बैठकर दूसरे को निहारने की बजाय अनदेखी करो तो फिर आप को भी कौन देख रहा है! जैसा बोना वैसा काटना। आखिर अंधों की संगत में “ब्रेल लिपि” ही सीखनी होगी!

एक दो नहीं, न जाने कितने व्यक्ति भी इसी तरह के आत्मकेंद्रण का शिकार हो, समूचा जीवन निष्फल कर देते हैं.

Logo of Income Tax Department

कोष मूलो दंड

देश के आयकर विभाग का आदर्श वाक्य ‘कोष मूलो दंड:’ है, जिसका अर्थ है कि ‘ राजस्व अथवा राजकोष प्रशासन की रीढ़ है।
आचार्य चाणक्य के ये शब्द राष्ट्र निर्माण और सुशासन के लिए कर राजस्व के महत्व पर बल देते हैं। उन्होंने कहा था कि सरकारों को कर उसी तरह लेना चाहिए, जैसे मधुमक्खी फूल से केवल उचित मात्रा में ही शहद लेती है और यह सुनिश्चित करती है कि दोनों का ही अस्तित्व बना रहे। वास्तव में, कर से विकास और ढांचागत परियोजनाओं को वित्त प्राप्त होता है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित होती है।







thoughtful unedited writing

हम जो नहीं हैं, वह बनने-दिखाने कोशिश में जो है, वह भी नहीं रह पाते! फिर ऐसे घाटे के गुणा-भाग का क्या फायदा?

दुनिया में मृत प्रेम से अधिक मृत और कोई वस्तु नहीं है. प्रेम जब एक बार मरता है तो बिलकुल ही मर जाता है.

चुनावी जागरूकता में पत्र सूचना कार्यालय की ऐतिहासिक भूमिका


दैनिक जागरण, छह अप्रैल २०१९ 

भारत निर्वाचन आयोग ने पहले आम चुनावों में ही चुनाव संबंधित समाचारों को प्रेस को शीघ्रता से उपलब्ध करवाने के लिहाज से विशेष व्यवस्था की थी। इस प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की देरी न होने को सुनिश्चित करने के लिए भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय की एक इकाई को दिल्ली में निर्वाचन आयोग के कार्यालय को काम में सहयोग के लिए संबद्व किया गया। इस तरह, देश को चुनाव संबंधी सभी समाचारों से पूरी तरह अवगत रखा गया। इस प्रक्रिया में बाद के चरण में पत्र सूचना कार्यालय ने चुनावी आंकड़ों के सांख्यिकीय विश्लेषण की रिपोर्ट को तैयार करने में भी महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान किया।

पहले आम चुनावों (1951-52) के आयोजन के शुरुआती चरण में मतदाताओं को शिक्षित करने और उन्हें आम चुनावों में भाग लेने के लिए लगातार जागरूक करने की जिम्मेदारी मोटे तौर पर प्रेस (समाचार पत्रों) पर ही थी। वैसे, प्रेस ने आसन्न चुनावों के लिए पहले कुछ प्रचार किया था लेकिन मतदान के पूर्वाभ्यास के आयोजनों के बाद ही चुनावी समाचारों को अखबारों में प्रमुखता मिलने लगी। पूरे देश में इन मतदान के पूर्वाभ्यासों को मिले प्रचार ने सभी का ध्यान आकर्षित किया। इससे चुनावी समाचारों की मांग में वृद्धि हुई, जिसे समाचार पत्रों ने पर्याप्त रूप से पूरा किया। समय के साथ, चुनाव संबंधित समाचारों को सभी प्रकार की प्रेस (समाचार पत्रों, पत्रिकाओं) में प्रमुखता मिलने लगी।

देश में जैसे-जैसे चुनावी गतिविधियों ने जोर पकड़ा, बड़ी संख्या में नए समाचार पत्रों की शुरूआत हुई जिनका मुख्य उद्देश्य चुनाव संबंधी समाचारों की अस्थायी मांग को पूरा करना था। वैसे इन समाचार पत्रों में से अधिकांश का लक्ष्य, किसी एक राजनीतिक दल या दूसरे दल के चुनावी प्रचार को गति देना था। फिर भी परोक्ष रूप से ही सही, उन्होंने चुनाव में मतदाताओं की रूचि को बढ़ाने और उन्हें ताजातरीन चुनावी समाचारों से अवगत करवाने का काम किया। पहले आम चुनावों की अवधि में 397 समाचार पत्र शुरू हुए और चुनाव समाप्ति के बाद इनमें से अधिकांश समाचार पत्र बंद हो गए। देश में बड़े पैमाने पर निरक्षरता के बावजूद, प्रेस ने मतदाताओं को शिक्षित करने और जनता के मन में चुनावों को लेकर गहरी रुचि पैदा करने तथा उसे बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

भारत के पहले आम चुनावों (1951-52) रिपोर्ट के अनुसार, इस बात में कोई दो राय नहीं कि साक्षरता के बढ़ने के साथ ही ताकतवर चौथे स्तंभ की चुनाव के मामलों में लोगों की रुचि पैदा करने, उसे जगाने और बनाए रखने में अत्याधिक महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इतना ही नहीं, वह चुनाव प्रक्रिया में शामिल व्यक्तियों की सराहनीय भूमिका को नागरिकों की निगाह में लाने के साथ उन्हें बुद्धिमता और विवेक के साथ मताधिकार का प्रयोग करने के महत्व को भी रेखांकित करेगा। इस कार्य में निर्वाचन आयोग को अपरिहार्य रूप से प्रेस से पूरा सहयोग मिला और उसके सभी प्रकार की प्रेस के साथ संबंध बेहद सौहार्दपूर्ण रहे।

इतना ही नहीं, विशाल अनुभवहीन मतदाताओं को शिक्षित करने की आवश्यकता को देखते हुए तत्कालीन केंद्र और राज्य सरकारों ने भी भारत निर्वाचन आयोग को इस काम में अपना सहयोग दिया। वैसे आयोग ने इसमें भी आवश्यक सावधानी बरती, जिससे सरकारी प्रचार हर तरह से पक्षपात रहित हो सके। पूरे देश में मतदाताओं को चुनावी मामलों में शिक्षित करने के अकेले उद्देश्य के साथ वृत्तचित्रों की एक श्रृंखला तैयार की गई और उन्हें पूरे देश में दिखाया गया।